Sunday, August 30, 2009

वॄक्ष

हमारी संस्कृति वन-प्रधान हैं। ॠग्वेद जो हमारी सनातन शक्ति का मूल हैं,वन देवियों की अर्चना करता हैं। मनु स्मॄति में वन-बिच्छेदक को पापी बतलाया गया हैं। अग्नि पुराण भी वॄक्ष की पूजा पर जोर देता हैं। वनो की छाया में हमने जन्म लिया और वही हमारा विकास हुआ। हमारे पूर्वज वनों के आर्थिक मह्त्व से भी परिचित थे। वे जानते थे कि वन हमारे आर्थिक जीवन की रीढ़ हैं। इस लिए वन को देवता समझ वे उसकी पूजा करते थे। एक दिन वह था जब आध्यात्मिक विकास के लिए सुन्दर स्थान जंगल ही समझा जाता था। साधु, संन्यासी दुनिया से विराग ले, ईश्वर प्राप्ति के लिए जंगलो में ही जाते थे। भारतीय इतिहास का बहुत बड़ा पॄष्ठ, भारतीय संस्कॄति का बहुत बड़ा अंग इन जंगलों के साथ संबंधित हैं। इन जंगलो के शांत वातावरण में ही हमारे अतीत की महानता सुरक्षित हैं। हमारे भोजन और हमारे स्वास्थ्य का अविरल स्रोत जंगल ही हैं। अपनी सुरक्षा के लिए जंगलो की सुरक्षा नितांत आवश्यक हैं। हमारे शरीर के स्वरूप का निर्माण पंचमहाभूतों-पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु के मिलने से हुआ। पृथ्वी से शरीर का मूर्त स्वरूप बना, जल उत्पत्ति का कारण हुआ, अग्नि, और आकाश सहायक तत्व रहे और वायु जीवित रहने का माध्यम हुई। प्रकृति प्रदत्त पेड़- पौधे, हरे- भरे वन सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं। पेड़- पौधो कोधरती के हरे फेफडे़कहा जाता हैं। ये दिन की धूप में अपना भोजन बनाने के दौरान मानव जीवन हेतु आक्सीजन छोड़ते हैं तथा कार्बन-डाई-आक्साइड गैस ग्रहण करते हैं। पेड़- पौधे जल के भी अच्छे संग्राहक हैं।वनों ने अनेक जीवनदायिनी औषधियों को सुरक्षित रखकर उनका संर्वधन करके मानव के स्वास्थ्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया हैं। यदि इनकी सुरक्षा की जाये तो मानव- जीवन खतरे में पड़ जायेगा। पेड़ हमारे आदिम पूर्वजों के पडो़सी, सहचर रहे हैं। वे आज भी उसी हालत में है जैसे पहले हमारे साथ थे लेकिन हम सभी आज उन्ही पेडो़ से शत्रुता नफरत करते जा रहे हैं। फिर उन बेचारे पेडो़ में वनो में किसी भी प्रकार का परिर्वतन नही हुआ।ये हमें फल, फूल, छाया, हवा, ईधन, आवास-निवास एवं सही जीवन देते हैं। इसके बदले हम उनको उजाड़ते हैं लेकिन धरती का हर पेड़ किसी किसी प्रकार से अपना अलग ही महत्व रखता हैं। घास-फूस तो जडी़ बूटियां हैं। अत: धरती पर जन्मी सभी वस्तुएं रक्षणीय और पूजनीय हैं। हमें उनकी रक्षा करनी चाहिए।...........

पेड़ होता नही तो पवन भी नही।
ये धरा भी नहीं ये चमन भी नही।
पेड़ ही से पवन शुद बहता सदा।
शुद्ध होता है पर्यावरण आपका
पेड़ से ही बरसते हैं बादल सभी।
और इनकी वजह से है बहती नदी।
अन्न देते हमें, फल ये देते हमें।
आओ हम मिल के पेड़ों की रक्षा करें।

16 comments:

  1. बहुत अच्छा आलेख है!

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  2. प्रकृति और वृक्ष के उपर आपका आलेख प्रशंसा के पात्र है..
    बधाई...

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  3. बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट...हमें पर्यावरण की रक्षा हर कीमत पर करनी ची चाहिए वर्ना आने वाली पीढियां हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी...
    नीरज

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  4. पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता मन को व्यथित करती है !
    हम कब चेतेंगे
    प्रकृति के साथ कब तक छेड़ छाड़ करते रहेंगे ?

    सार्थक पोस्ट ... सुन्दर लेखन
    शुभकामनायें

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  5. वृक्षों की महिमा जग जानी।
    { Treasurer-S, T }

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  6. aapki bhasha kaafi bhari bharkam hai....sirf grahini to nahi lagti aap...khair kaafi achha likhti hain..aapke blog par aa kar achha laga

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  7. सर्वोपयोगी जानकारी एक बेहतर दृष्टिकोण के साथ। इस ब्‍लॉग के अन्‍य लेख भी पढ़ने की उत्‍सुकता जाग गई है।

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  8. vaah.....aap to badaa acchha kaam kar rahi hain... aapke blog par aakar badaa acchha lagaa....sach.....!!

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  9. Interesting nd useful post.thnx for this. go on.....

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  10. सुंदर और उपयोगी पोस्ट।

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  11. उपयोगी जानकारी
    प्रकृति और वृक्ष के उपर आपका सार्थक लेख
    शुभकामनायें



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  12. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

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  13. Lekh aur kavita dono hi vicharotezak hain.Shubkamnayen.

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