Wednesday, June 10, 2009

नारी वेदना/कंचनलता चतुर्वेदी

फूलों जैसे पलकों से मैं,
कांटे रोज़ चुना करती हूँ।
गीत सुनाकर गजल सुनाकर,
तुमसे मैं पूछा करती हूँ।

कर कमलो से अपने ही मैं,
फूलों की हूँ सेज सजाती।
नयनों में आँसू है फिर भी,
तुम पर अपना प्यार लुटाती।

बंधी पाँव में बेड़ी जबसे,
इसको खोल नहीं सकती हूँ।
मन में कितना दर्द छिपा है,
लेकिन बोल नहीं सकती हूँ।

ये जीवन सोने का पिज़डा़
पंछी बनी तड़पती हूँ मैं।
दुनिया के सब नाते टूटे,
तन्हा-तन्हा रहती हूँ मैं।

गज़ल नहीं यह गीत नहीं यह,
मेरी व्यथा कहानी है ये।
जीवन में बस दुख ही दुख है,
आँखो में बस पानी है ये।